जटाशंकर धाम का इतिहास

जटाशंकर धाम मध्य प्रदेश प्रान्त के बुन्देलखण्ड के छतरपुर जिला के अंतर्गत बिजावर तहसील से मात्रा 15 किलो मीटर की दूरी पर और छतरपुर से 50 किलो मीटर की दूरी पर पहाड़ों से घिरा एक शिव मंदिर है। जिसे जटाशंकर के नाम से जाना जाता हैं। इस प्राचीन मंदिर में गौमुख से पानी की धारा गिरती रहती हैं। जिससे भगवान शिव का जलाभिषेक होता हैं और इस मंदिर को बुंदेलखंड का केदारनाथ भी कहा जाता हैं।

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जटाशंकर धाम की महिमा

जटाशंकर धाम पर गौमुख से पानी की धारा हमेशा बहती रहती हैं। जटाशंकर धाम पर तीन छोटे छोटे जल कुंड हैं। आश्चर्य की बात यह है की इनका पानी हमेशा मौसम से विपरीत रहता हैं। ठंड में गर्म और गर्म में ठंडा मदिर की इन जल कुंडो का पानी कभी खत्म नहीं होता हैं। लोगो की मान्यताओं के अनुसार इन जल कुंड में स्नान करने से सभी रोग बाधाएं दूर हो जाती हैं।

जटाशंकर धाम का इतिहास

इस मंदिर का इतिहास 14वी शताब्दी का हैं। लोगों की मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर का निर्माण 14वी शताब्दी में करवाया गया था। ऐसा कहा जाता हैं की विवस्तु नाम के राजा को भगवान शिव ने स्वपन मैं आकर अपना स्थान बताया था। उसके बाद राजा ने सैनिकों के साथ उस स्थान को खोजा और शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा करवाई और हवन किया राजा ने अपने कुष्ठ रोग से ग्रसित मंत्री को हवन में बैठने के लिए कहा। लेकिन कुष्ठ रोग से ग्रसित होने के कारण मंत्री ने हवन करने से इन्कार कर दिया उसके बाद। लेप लगाकर मंत्री की शुद्धता की गई। जिससे मंत्री ठीक हो गया और तब से यह मानता हैं की तीन छोटे छोटे जल कुंड में स्नान करने से सभी बीमारियां दूर हो जाती हैं।

बुंदेलखंड का केदारनाथ हैं जटाशंकर धाम

जटाशंकर धाम पर सावन के महीने में लाखों लोग रोजाना दर्शन करने आते हैं। इस मंदिर पर सबसे ज्यादा भीड़ अमावस्या के दिन पड़ती हैं। क्षेत्र में नए वाहन आने पर सबसे पहले जटाशंकर लाया जाता हैं। इससे कारण जटाशंकर धाम बुन्देलखण्ड का केदारनाथ कहा जाता हैं।

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